राजा बलि की कथा

      आप सभी को दीपावली की मंगल कामनाएं......
   दोस्तों,सात तारीख को बलि प्रतिपदा है.इसे मनाने के पीछे की कथा आपलोगों के साथ साझा करना चाहता हूँ.
   एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से विनयपूर्वक पूछा कि,हे भगवन ! आप मुझे कृपा कर कोई ऐसा व्रत बताएं,जिसके करने से मैं अपने खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त कर सकूं,क्योंकि राज्यच्युत हो जाने के कारण मैं बहुत दुखी हूँ.
    श्रीकृष्ण ने कहा,हे राजन ! मेरा परमभक्त दैत्यराज बलि ने एक बार सौ अश्वमेघ यज्ञ करने का संकल्प किया.निन्यानबे यज्ञ तो उसने निर्विघ्न रूप से पूर्ण कर लिये,परन्तु सौवाँ यज्ञ के पूर्ण होते ही उन्हें अपने राज्य से निर्वासित होने का भय सताने लगा.
     देवताओं को साथ लेकर इन्द्र क्षीरसागर निवासी भगवान विष्णु के पास पहुंचकर वेदमंत्रों से स्तुति की और अपने कष्ट का सम्पूर्ण वृत्तांत भगवान विष्णु से कह सुनाया.सुनकर विष्णु ने उनसे कहा-तुम निर्भय होकर अपने लोक में जाओ.मैं तुम्हारे कष्ट को शीघ्र दूर कर दूंगा.
     इन्द्र के चले जाने पर भगवान नें वामन का अवतार धारण कर बटुवेश में राजा बलि के यज्ञ में प्रस्थान किया.राजा बलि को वचनबद्ध कर भगवान ने तीन पग भूमि उनसे दान में मांग ली.बलि द्वारा दान का संकल्प करते ही भगवान ने अपने विराट रूप से एक पग में सारी पृथ्वी को नाप लिया.दूसरे पग से अंतरिक्ष और तीसरा चरण उसके सिर पर रख दिया.राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न हो भगवान ने उससे वर मांगने के लिए कहा.राजा ने कहा-कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक अर्थात दीपावली तक इस धरती पर मेरा राज्य रहे.इन तीन दिनों तक सभी लोग दीप-दान कर लक्ष्मीजी की पूजा करें और कर्ता के गृह में लक्ष्मी का वास हो.
     राजा द्वारा याचित वर को देकर भगवान ने बलि को पातालपुरी का राज्य देकर पाताल लोक को भेज दिया.उसी समय से देश के सम्पूर्ण नागरिक इस पुनीत दीपावली पर्व को मनाते चले आ रहे हैं.अतः सभी प्राणियों के लिए इस पर्व को सद्भावना पूर्वक मनाना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है.

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