मैं अकेली...

फेरकर मुझसे गया जो ,उस नज़र की बात है I
चोट  अन्दर तक लगी,गहरे असर की बात है II

यार की बातें छिड़ी तो घाव ताज़ा हो गया ,
गौर से सुनने लगी,अपने ही घर की बात है II

गाँठ थी कमजोर उसको रख न पाई बांधकर ,
तोड़कर बहने लगी,उठते लहर की बात है II

है तजुर्बे की कमी,मंजिल भी शायद दूर है ,
किस तरह पूरा करूँ,लम्बे सफ़र की बात है II

चार दिन की बात हो तो काट लूँ हँसते हुए ,
कैसे गुजरेगी अकेले,उम्र भर की बात है II

दे रही दस्तक 'उजाला' हो खड़ी दहलीज़ पर ,
कालिमा छँटने लगी ,नूतन पहर की बात है II

2 टिप्‍पणियां:

  1. फेरकर मुझसे गया जो ,उस नज़र की बात है
    चोट अन्दर तक लगी,गहरे असर की बात है

    बहुत सुन्दर मनभावन रचना .... वाह

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