एकाकीपन...
रात भर रोये तुम्हारी
याद में हम इस कदर ,
आंसुओं से हो गया
बिस्तर हमारा तर-बतर II
तुम तलक पहुंचे न शायद
दर्द की ये दास्ताँ ,
सो रही हो नींद की
आगोश में यूँ बेखबर II
दिल से दिल की बात
हो जाए तो कुछ आराम हो ,
चल न पाऊंगा मैं तनहा
कर न पाऊंगा सफ़र II
चुभ रहा काँटा बदन में ,
खल रहा एकाकीपन ,
घुट रहा है दम ,कि
भारी
हो रहा आठों पहर II
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कविता
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