राह का काँटा...
इस कदर तुम मौन धर चुपचाप
बैठी ,
ऐसा लगता है, कोई नाता नहीं था II
हर कदम ,हर मोड़ पर जब भी पुकारा,
कौन सा गम था जो मैं बांटा
नहीं था II
हर घड़ी तुमसे हुआ करती थी
बातें ,
इससे पहले ऐसा सन्नाटा नहीं
था II
कैसे समझाऊँ तुम्हें,तुमको हमारे ,
साथ चलने में कोई घाटा नहीं
था II
बच निकलने की तुम्हें क्या
थी जरूरत,
मैं तुम्हारी राह का काँटा
नहीं था II
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