ऐतिहासिक लम्हा

शनिवार को सारा देश अपनी सर्वोच्च संस्था की
तरफ आँख गडाए बैठा था.जिन्होनें कभी नहीं देखा उन्होनें भी लोकसभा और राज्यसभा को
ढूंढकर देखा.क्रिकेट की बजाय संसद की कार्यवाही को इतनी तल्लीनता से देखा जाना भी
इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्द्धि है.सब जानना चाहते थे कि संसद में कुर्सियां
फेंकने वाले,एक दूसरे पर
माइक फेंकने वाले उनके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि अन्ना के अनशन,जनलोकपाल और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर क्या बोलते हैं?तार्किक बहस के माध्यम से उम्मीद जगती, पर कुछ नेताओं के वक्तव्य से मन
में शंका भी उठने लगती कि क्या होगा?शरद यादव और लालू प्रसाद
यादव के वक्तव्य खास तौर पर निराश करने वाले थे.लालू प्रसाद ने अन्ना का जिस
प्रकार मजाक उड़ाया वह काफी तकलीफदेह था.लालू ने अपनी इसी शैली के कारण ही ‘जोकर’ की उपाधि पाई है.और अन्ना का लालू को जवाब भी
तुरंत मिल गया.अन्ना को उस जवाब में एक पंक्ति और जोड़ देना चाहिए था कि जानवरों का
चारा खा जानेवाले में ये ताकत कहाँ से आयेगी?अन्ना की ये
ताकत ‘सच्चाई’ की ताकत है,’इमानदारी’ की ताकत है.हालांकि वरुण गांधी जैसे युवा
नेता के वक्तव्य ने काफी प्रभावित किया.
दरअसल इस पूरे आंदोलन के दौरान जन और तंत्र के
बीच का धागा खींचकर कुछ ज्यादा ही तन गया था.जनता और नेता इसे विपरीत दिशा में
खींचकर तोड़ दें उसके पहले ही संसद ने ‘जनतंत्र’ को मजबूत करने की दिशा में बड़ा काम किया
है.अर्धरात्रि को मिली आजादी के बाद से ही सुनहरी सुबह की तलाश में देश सतत करवट
बदल रहा है.हर परिवर्तन उम्मीद की कुछ किरणें लेकर आया और देश आगे बढ़ा.जिन युवाओं
की भीड़ ने अन्ना आंदोलन के हाथ मजबूत किये हैं,इस बार नई
सुबह के सूरज को अपनी और खींचने में ये ही युवा पीढ़ी बड़ी भूमिका निभाएंगे.
अन्ना अनशन तोड़ रहे हैं.ज्यों ही उन्होनें
गिलास मुंह से लगाया मूसलाधार बारिश होने लगी.ईश्वर भी इस ‘महापुरुस’ पर गदगद है.देश की
जनता को इस आंदोलन की सफलता पर एक बार फिर ह्रदय से बधाई...अभिनन्दन... और एक नई सुबह के आगाज़ की शुभकामना के साथ...
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राजनीति
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