ख्वाहिशें...
आँख से ये अश्रुधारा ?
कब तलक गुजरेगी तनहा
जिंदगी यूँ बेसहारा ?
चाहती हूँ तय सफ़र ,
करना तुम्हारे साथ में ,
मैं भी चलना चाहती हूँ ,
गर बनो मेरा सहारा II
जिंदगी की उलझनों में ,
इस कदर उलझी रही ,
थी कहाँ फुर्सत जो देखूं ,
लौट कर सपने दुबारा II
डूबने के डर से थी ,
बैठी रही इस पार मैं ,
दूर थी मंज़िल मेरी और ,
तेज थी लहरों की धारा II
नाव थी टूटी, भँवर के
बीच में अटकी पड़ी ,
तुम बनो पतवार तो ,
शायद मिले मुझको किनारा II
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कविता
सुन्दर रचना ....
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