बनारस में आतंक..
आतंकी विस्फोट I
भारत की संप्रभुता पर ,
फिर से गहरी चोट II
फिर से गहरी चोट ,
बाबरी ध्वंस की बरसी I
बाबर के औलाद
कर रहे मातम पुरसी II
चन्दन,रोरी,शंख,कमंडल,
पूजावाली थाल I
बिखरे सब सामान,घाट के
पत्थर हो गए लाल II
पत्थर हो गए लाल ,
नपुंसक सत्ताधारी I
फिर से वही प्रलाप ,
कर रहे निंदा जारी II
चन्दन,रोरी,शंख,कमंडल,
पूजावाली थाल I
बिखरे सब सामान,घाट के
पत्थर हो गए लाल II
पत्थर हो गए लाल ,
नपुंसक सत्ताधारी I
फिर से वही प्रलाप ,
कर रहे निंदा जारी II
खून बना पानी आतंकी
हाथ धो रहे I
देश की मिट्टी में बारूदी
आग बो रहे II
देश के सीने में ,
चुभ रहा हर दिन काँटा I
अमन-चैन भारत का ,
इनको नहीं सुहाता II
काँटे का काँटे से ही
उपचार करो I
जितने भी आतंकी हैं ,
संहार करो II
Labels:
कविता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें