आंसुओं की धार...
राह में बिखरे पड़े हैं ,
फूल सारे खार बनकर I
सामने आकर खड़ी है ,
जीत मेरी हार बनकर II
बन न पाई तुम
मेरे ,
चेहरे की प्यारी
सी हंसीं I
सज न पाया मैं
तुम्हारे ,
रूप का सिंगार
बनकर II
याद जब आती हो, काबू
में नहीं रहता है दिल I
आँख से मेरे बही तुम ,
आंसुओं की धार बनकर II
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कविता
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