अन्ना..अन्ना..अन्ना

   दोस्तों,आज अन्ना को अनशन पर बैठे छठवां दिन है,लेकिन अंधी और बहरी सरकार को न कुछ दिखाई दे रहा है और न सुनाई.सरकार जन लोक पाल बिल के प्रति कितनी संजीदा या गंभीर है ये संसद में कपिल सिब्बल के द्वारा दिए गए दो बयानों से साफ़ समझ में आ जाता है...
   १.सिब्बल ने स्पीकर को संबोधित करते हुए यह कहा कि कानून बनाने का अधिकार सिर्फ हमको है,हम ये अधिकार किसी 'बाहरी आदमी' को नहीं दे सकते.यानि सिब्बल की निगाह में देश की जनता 'बाहरी आदमी' है.
    २.उनका दूसरा बयान उन जैसे भ्रष्ट और अन्य कांग्रेसी भ्रष्टाचारियों को नंगा करने के लिए काफी है.हालांकि सिब्बल घाघ किस्म के सांसद हैं,लेकिन उनके मुंह से जो निकला वह उनका  और उनकी सरकार का असली चेहरा उजागर करता है.उन्होनें कहा कि,"साथियों,अन्ना के बिल को मान लेने से ऐसा नहीं होगा कि हम जिस डाल पर पर बैठे हैं उसी को काट देंगे?"अर्थात ये जिस भ्रष्टाचार की डाल पर बैठे हैं,उसे कटने नहीं देंगे.
   ये तो रही सिब्बल की वकालत.दरअसल कांग्रेस पार्टी में मानसिक रूप से दिवालिया हो चुके नेताओं की कमी नहीं है.ऐसे ही एक सांसद है मनीष तिवारी.आपने सुना होगा कि किस तरह से वे अन्ना पर कीचड़ उछाल रहे थे.आज उनका अता-पता नहीं है कि वे कहाँ दुबके बैठे हैं.और प्रधानमंत्री?वे कह रहे हैं कि सरकार मजबूत बिल लाने के लिए प्रतिबद्ध है.प्रधानमंत्रीजी,कैसी प्रतिबद्धता?शुरू में आप कह रहे थे कि आपको लोकपाल में आने में कोई ऐतराज नहीं है.जब ए.राजा ने २ जी घोटाले में आपका नाम लिया तो आप पलट गए!!क्या यही है आपकी प्रतिबद्धता?जब मजबूत लोकपाल के लिए आप प्रतिबद्ध हैं तो संसद में सरकारी लोकपाल बिल क्यों पेश किया गया?और अब जब कि एक ७४ साल का बूढ़ा व्यक्ति छः दिनों से अनशन पर है आप बिल को स्थाई समिति में ले जाने की सलाह दे रहे हैं!!आप को पता नहीं कि स्थाई समिति में कौन-कौन है?उसका एक सदस्य तो अन्ना को सर से पाँव तक भ्रष्ट होने का आरोप तक लगा चूका है.
   भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त देशवासियों के मन में लंबे समय से गुस्सा उबल रहा था.कॉमनवेल्थ गेम्स और २जी घोटाले ने इस उबाल को और तेज कर दिया.दूसरी और जनता महंगी दाल-सब्जी खाने और ७० रुपये लीटर पेट्रोल डलवाने के लिए मजबूर है.तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद सरकार न भ्रष्टाचार कम कर पाई न महंगाई.
   अन्ना और उनकी टीम पिछले डेढ़ दो सालों से जन लोकपाल बिल पर काम कर रही थी.सरकार पिछले ४२ सालों से केवल कोशिश कर रही थी पर ला नहीं पाई.सरकार और टीम अन्ना के बीच टकराव तब शुरू हुआ जब गुस्सा चरम पर था.ये सारा गुस्सा अन्ना के समर्थन और सरकार के विरोध में उतर आया.
   इस सन्देश को समझकर पूरी व्यवस्था को हल ढूँढने के लिए कमर कसनी होगी.अगर इस आक्रोश का मतलब समझने के लिए भी शासन तैयार नहीं है तो फिर बड़ा भारी उलटफेर हो सकता है.सरकार इसे चुनौती की बजाय अवसर माने तो हालात बदल सकते हैं.हर शहर में सडकों पर आई इस भीड़ को सही दिशा देने और आम जीवन में भ्रष्टाचार मिटाने की कोशिश नए भारत के निर्माण की राह प्रशस्त कर सकती है.
    किसी अर्थशास्त्री का कथन है कि जनता को महंगाई के बोझ तले इतना दबा दो कि वो हमेशा दो जून के रोटी-दाल की जुगाड़ में ही उलझी रहे.यदि जनता का पेट भरा रहेगा तो उसका ध्यान अन्य बातों पर जाएगा और वो अपना अधिकार माँगने के लिए उठ खड़ी होगी.कांग्रेसी इस कथन को बखूबी अमल में ला रहे हैं.हो भी क्यों नहीं,उनका मुखिया भी तो मूल रूप से एक अर्थशास्त्री ही है.लेकिन अन्ना को मिल रहे अपार जनसैलाब के समर्थन को देखकर उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा.चलते-चलते अन्ना का सन्देश...देश की जनता के लिए...





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