हिन्दुत्व विरोधी काला क़ानून
कभी देश के प्रथम
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को धमकाते हुए कहा था कि
मैं संघ को नेस्तनाबूत कर दूँगा। संघ को कुचलने का उन्होने भरसक प्रयत्न भी किया। राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के प्रति कांग्रेस की नफरत का कोई ओर-छोर नही दिखता। श्रीमती
इन्दिरा गांधी भी संघ को ही अपना दुश्मन नम्बर एक मानती थीं। शायद उसी दुश्मनी को
राहुल गांधी भुनाना चाहते है। राहुल बाबा अभी प्रधानमंत्री तो बने नही फिर भी
अमेरिकी राजदूत से मिलने पर उन्होंने आतंकवाद के बहाने संघ को घेरने के लिए हिन्दू
आतंकवाद के खतरे को भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बताकर अपनी राजनीति की भावी दिशा
तय कर दी है। कांग्रेस के इसी संघ द्वेष के एजेण्डे को आगे बढ़ाने का काम भारत
सरकार बखूबी कर रही है । सत्ता से निराश दिग्विजय सिंह और अपनी कुर्सी को बचाये
रखने के लिए गृहमंत्री पी. चिदम्बरम इस मुहिम के खास चेहरे है।आपने दिग्विजय के
मुंह से अक्सर आर एस एस का हौव्वा खड़ा करते सुना होगा ।
सन् २०१४ के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस हिन्दुत्व, हिन्दु संगठन, साम्प्रदायिकता आदि का भूत खड़ाकर, हिन्दु समाज में फूट डालकर और मुसलमानों को हिन्दुओं का डर दिखाकर चुनावी वैतरणी पार करने की तैयारी में है। जनता में मनमोहन सिंह की छवि घोटालों की सरकार, मंहगाई की सरकार एवं अमेरिका परस्त सरकार के रुप में इतने गहरे पैठ चुकी है कि अब कांग्रेस की डुबती नैया भगवान ही बचा सकते हैं । सोनिया गाँधी को अच्छी तरह पता है कि उन जैसे ईसाई को भारत की जनता कभी भी सहजता से अपना नेता स्वीकार नही करेगी। गांधी परिवार के नाम पर गधे को भी बाप कहने के लिए तैयार कांग्रेसियो ने उन्हें ”सुपर प्रधानमंत्री” के रुप में बैठा दिया है और ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया है।
आज यही असंवैधानिक, गैर-जिम्मेदार , हिन्दुत्व विरोधी नौकरशाहो, नेताओं एवं कांग्रेसियों की ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ भारत में उस काले कानून को लाना चाहती है जो गोरे अंग्रेंज भी न ला सके थे। भारत की पंथनिरपेक्षता पर प्रहार करने वाला ‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विरोधी’ यह बिल यदि पास होता है, तो इसके द्वारा देश के किसी भी प्रांत में साम्प्रदायिक, भाषायी प्रत्येक अपराध के लिए केवल हिन्दुओं को दण्ड़ित किया जायेगा।
विधेयक के मसौदे में साम्प्रदायिक हिंसा के परिप्रेक्ष्य में ‘समूहों’ की जो परिभाषा दी गयी है उसके अनुसार धार्मिक अथवा भाषाई अल्पसंख्यक या अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग ही इस कानून से संरक्षण प्राप्त कर पायेंगे। इस दृष्टि से भारत के ३५ राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों मे से २८ में जहॉ पर हिन्दु बहुसंख्यक है, किसी साम्प्रदायिक हिंसा के जिम्मेदार माने जायेगें। अब अगर दंगा या फसाद उ0 प्र0 में होता है तो वह चाहे वाराणसी में हो या जौनपुर मे, दण्डित केवल हिन्दू ही होगा।
प्रस्ताविक कानून के अनूसार वह अल्पसंख्यक जिसको शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक क्षति पहुँची हो उसे यह कानून संरक्षण देगा। इस कानून के दायरे में पीड़ित का परिवार, संबंधी, कानूनी अभिभावक और उत्तराधिकारी भी शामिल है। अर्थात् देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले मुस्लिम या इसाई का यदि किसी समान्य मुद्दे पर भी अपने पड़ोसी हिन्दू से विवाद होगा तो उसके रिश्तेदार भी मुकदमा कर सकेगें। परन्तु जब जम्मू-कश्मीर की बात आती है तो कानून में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर की सहमति से इसे वहाँ लागू किया जा सकता है।मजे की बात ये है कि यदि हिंदू व्यक्ति को जानबूझकर फंसाया गया है तो उस हिंदू व्यक्ति को अपनी निर्दोषिता खुद प्रमाणित करनी होगी ।
वास्तव में शीर्ष मंत्री स्तर पर फैला भ्रष्टाचार,काले धन के मुद्दे पर रोज ही सुप्रीम कोर्ट से लताड़ खा रही, मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम हो चुकी देश में सर्वाधिक ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के कुकृत्यों एवं महंगाई की मार से पीस रही जनता को साम्प्रदायिकता के नाम पर बाटने वाले इस बिल का विरोध जोर शोर से शुरु हो गया है। इस कानून की आलोचना करते हुए वरिष्ठ लेखक ए. सूर्य प्रकाश ने कहा है कि यह कहने में कोई संकोच नही होना चाहिए कि बनने वाला यह कानून न केवल साम्प्रदायिकता को बढावा देगा, साथ ही देश के बहुसंख्यक हिन्दुंओं को निशाना भी बनाने वाला है। इस विधेयक के सूत्रधार यदि अपने मंसूबे में सफल रहे तो भारत की एकता और अखण्डता खतरे में पड़ जायेगी। उन्होनें मांग की है कि जाँच होनी चाहिए कि विधेयक का पूरा मसौदा कहॉ से आया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस काले कानून के खिलाफ आवाज बुलंद की है।एक बात बहुत स्पष्ट है कि आज कांग्रेस विदेशी षड्यंत्रो की गढ़ बनती जा रही है। गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त हिन्दु समाज का एक वर्ग आज भी यह मानने की भूल करता जा रहा हे कि यह वही कांग्रेस है जिसे महात्मा गांधी, तिलक या नेहरु और पटेल ने बढ़ाया। देश के बहुसंख्यक समाज को चाहिए कि वह एकजुट हो और भ्रष्टाचार और आतंकवाद की पोषक सरकार के इस समाज तोड़क, विभाजन कारी काले कानून के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन कर इसे समाप्त करायें।
सन् २०१४ के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस हिन्दुत्व, हिन्दु संगठन, साम्प्रदायिकता आदि का भूत खड़ाकर, हिन्दु समाज में फूट डालकर और मुसलमानों को हिन्दुओं का डर दिखाकर चुनावी वैतरणी पार करने की तैयारी में है। जनता में मनमोहन सिंह की छवि घोटालों की सरकार, मंहगाई की सरकार एवं अमेरिका परस्त सरकार के रुप में इतने गहरे पैठ चुकी है कि अब कांग्रेस की डुबती नैया भगवान ही बचा सकते हैं । सोनिया गाँधी को अच्छी तरह पता है कि उन जैसे ईसाई को भारत की जनता कभी भी सहजता से अपना नेता स्वीकार नही करेगी। गांधी परिवार के नाम पर गधे को भी बाप कहने के लिए तैयार कांग्रेसियो ने उन्हें ”सुपर प्रधानमंत्री” के रुप में बैठा दिया है और ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया है।
आज यही असंवैधानिक, गैर-जिम्मेदार , हिन्दुत्व विरोधी नौकरशाहो, नेताओं एवं कांग्रेसियों की ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ भारत में उस काले कानून को लाना चाहती है जो गोरे अंग्रेंज भी न ला सके थे। भारत की पंथनिरपेक्षता पर प्रहार करने वाला ‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विरोधी’ यह बिल यदि पास होता है, तो इसके द्वारा देश के किसी भी प्रांत में साम्प्रदायिक, भाषायी प्रत्येक अपराध के लिए केवल हिन्दुओं को दण्ड़ित किया जायेगा।
विधेयक के मसौदे में साम्प्रदायिक हिंसा के परिप्रेक्ष्य में ‘समूहों’ की जो परिभाषा दी गयी है उसके अनुसार धार्मिक अथवा भाषाई अल्पसंख्यक या अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग ही इस कानून से संरक्षण प्राप्त कर पायेंगे। इस दृष्टि से भारत के ३५ राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों मे से २८ में जहॉ पर हिन्दु बहुसंख्यक है, किसी साम्प्रदायिक हिंसा के जिम्मेदार माने जायेगें। अब अगर दंगा या फसाद उ0 प्र0 में होता है तो वह चाहे वाराणसी में हो या जौनपुर मे, दण्डित केवल हिन्दू ही होगा।
प्रस्ताविक कानून के अनूसार वह अल्पसंख्यक जिसको शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक क्षति पहुँची हो उसे यह कानून संरक्षण देगा। इस कानून के दायरे में पीड़ित का परिवार, संबंधी, कानूनी अभिभावक और उत्तराधिकारी भी शामिल है। अर्थात् देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले मुस्लिम या इसाई का यदि किसी समान्य मुद्दे पर भी अपने पड़ोसी हिन्दू से विवाद होगा तो उसके रिश्तेदार भी मुकदमा कर सकेगें। परन्तु जब जम्मू-कश्मीर की बात आती है तो कानून में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर की सहमति से इसे वहाँ लागू किया जा सकता है।मजे की बात ये है कि यदि हिंदू व्यक्ति को जानबूझकर फंसाया गया है तो उस हिंदू व्यक्ति को अपनी निर्दोषिता खुद प्रमाणित करनी होगी ।
वास्तव में शीर्ष मंत्री स्तर पर फैला भ्रष्टाचार,काले धन के मुद्दे पर रोज ही सुप्रीम कोर्ट से लताड़ खा रही, मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम हो चुकी देश में सर्वाधिक ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के कुकृत्यों एवं महंगाई की मार से पीस रही जनता को साम्प्रदायिकता के नाम पर बाटने वाले इस बिल का विरोध जोर शोर से शुरु हो गया है। इस कानून की आलोचना करते हुए वरिष्ठ लेखक ए. सूर्य प्रकाश ने कहा है कि यह कहने में कोई संकोच नही होना चाहिए कि बनने वाला यह कानून न केवल साम्प्रदायिकता को बढावा देगा, साथ ही देश के बहुसंख्यक हिन्दुंओं को निशाना भी बनाने वाला है। इस विधेयक के सूत्रधार यदि अपने मंसूबे में सफल रहे तो भारत की एकता और अखण्डता खतरे में पड़ जायेगी। उन्होनें मांग की है कि जाँच होनी चाहिए कि विधेयक का पूरा मसौदा कहॉ से आया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस काले कानून के खिलाफ आवाज बुलंद की है।एक बात बहुत स्पष्ट है कि आज कांग्रेस विदेशी षड्यंत्रो की गढ़ बनती जा रही है। गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त हिन्दु समाज का एक वर्ग आज भी यह मानने की भूल करता जा रहा हे कि यह वही कांग्रेस है जिसे महात्मा गांधी, तिलक या नेहरु और पटेल ने बढ़ाया। देश के बहुसंख्यक समाज को चाहिए कि वह एकजुट हो और भ्रष्टाचार और आतंकवाद की पोषक सरकार के इस समाज तोड़क, विभाजन कारी काले कानून के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन कर इसे समाप्त करायें।
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