नवरात्र
नवरात्रि का त्योहार नौ
दिनों तक चलता है । इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती,लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की
जाती है । पहले तीन दिन पार्वती,अगले तीन दिन लक्ष्मी
माता और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता की पूजा करते हैं ।
व्रत विधि :
आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपद्रा से लेकर नौं दिन तक विधि पूर्वक व्रत करें । प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गाजी का ध्यान करके कथा पढ़नी चहिए । यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय का भोजन करें । इस व्रत में उपवास या फलाहार आदि का कोई विशेष नियम नहीं है । कन्याओं के लिये यह व्रत विशेष फलदायक है । कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा जय हो’ का उच्चारण करें ।
कलश स्थापना :
नवरात्र के दिनों में कहीं-कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है । एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है । मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं अथवा जौ के दाने बो कर ज्वार उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है । दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है । महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मुर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य विधि पूर्वक पूजा करें और पुष्पो को अर्ध्य दें । इन नौ दिनो में जो कुछ दान दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है । इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है ।
कन्या पूजन :
नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है । अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें ५,७,९ या ११ कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है । वासन्तिक नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है । माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है । नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं - शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चन्द्रघन्टा, कूष्माण्डा,स्कन्द माता,कात्यायिनी,कालरात्रि,महागौरी और सिद्धिदात्री ।
१) श्री शैलपुत्री : श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं । पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं । नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है । इनकी वेशभूषा हरे रंग की होती है ।
२) श्री ब्रह्मचारिणी : श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी है । इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी । अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं । नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है । इनकी वेशभूषा सफ़ेद रंग की होती है ।
३) श्री चंद्रघंटा : श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है । इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है । नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है । इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है । इनकी वेशभूषा लाल रंग की होती है ।
आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपद्रा से लेकर नौं दिन तक विधि पूर्वक व्रत करें । प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गाजी का ध्यान करके कथा पढ़नी चहिए । यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय का भोजन करें । इस व्रत में उपवास या फलाहार आदि का कोई विशेष नियम नहीं है । कन्याओं के लिये यह व्रत विशेष फलदायक है । कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा जय हो’ का उच्चारण करें ।
कलश स्थापना :
नवरात्र के दिनों में कहीं-कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है । एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है । मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं अथवा जौ के दाने बो कर ज्वार उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है । दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है । महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मुर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य विधि पूर्वक पूजा करें और पुष्पो को अर्ध्य दें । इन नौ दिनो में जो कुछ दान दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है । इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है ।
कन्या पूजन :
नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है । अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें ५,७,९ या ११ कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है । वासन्तिक नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है । माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है । नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं - शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चन्द्रघन्टा, कूष्माण्डा,स्कन्द माता,कात्यायिनी,कालरात्रि,महागौरी और सिद्धिदात्री ।
१) श्री शैलपुत्री : श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं । पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं । नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है । इनकी वेशभूषा हरे रंग की होती है ।
२) श्री ब्रह्मचारिणी : श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी है । इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी । अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं । नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है । इनकी वेशभूषा सफ़ेद रंग की होती है ।
३) श्री चंद्रघंटा : श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है । इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है । नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है । इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है । इनकी वेशभूषा लाल रंग की होती है ।
४) श्री कूष्मांडा : श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं । अपने उदर से अंड
अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से
पुकारा जाता है । नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है । श्री कूष्मांडा
की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं । इनकी वेशभूषा गाढ़े लाल रंग की होती है ।
५) श्री स्कंदमाता : श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं । श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है । नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है । इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं । इनकी वेशभूषा लाल रंग की होती है ।
६) श्री कात्यायनी : श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी है । महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था । इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं । नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है । इनकी वेशभूषा सफ़ेद और लाल मिश्रित रंग की होती है ।
७) श्री कालरात्रि : श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं । ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं । नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है । इस दिन साधक को अपना चित्त मध्य ललाट में स्थिर कर साधना करनी चाहिए । इनकी वेशभूषा सफ़ेद और लाल मिश्रित रंग की होती है ।
८) श्री महागौरी : श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं । इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं । नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है । इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं । इनकी वेशभूषा सफ़ेद रंग की होती है ।
९) श्री सिद्धिदात्री : श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं । ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं । इनकी वेशभूषा लाल रंग की होती है । नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है ।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है । दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है । इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं ।
लाल रंग ही दुर्गाजी को क्यों प्रिय है ?
५) श्री स्कंदमाता : श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं । श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है । नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है । इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं । इनकी वेशभूषा लाल रंग की होती है ।
६) श्री कात्यायनी : श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी है । महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था । इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं । नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है । इनकी वेशभूषा सफ़ेद और लाल मिश्रित रंग की होती है ।
७) श्री कालरात्रि : श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं । ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं । नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है । इस दिन साधक को अपना चित्त मध्य ललाट में स्थिर कर साधना करनी चाहिए । इनकी वेशभूषा सफ़ेद और लाल मिश्रित रंग की होती है ।
८) श्री महागौरी : श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं । इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं । नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है । इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं । इनकी वेशभूषा सफ़ेद रंग की होती है ।
९) श्री सिद्धिदात्री : श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं । ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं । इनकी वेशभूषा लाल रंग की होती है । नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है ।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है । दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है । इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं ।
लाल रंग ही दुर्गाजी को क्यों प्रिय है ?
दरअसल लाल रंग सबसे प्रखर और उर्जा से भरा हुआ
रंग है । लाल रंग का प्रतीक ग्रह मंगल होता है । जब देव - दानव युद्ध हुआ, तब मंगल ग्रह
ने शक्ति रूपी दुर्गा को भ्रातृ सहयोग से जो संहारक शक्ति प्रदान की थी, उसमें लाल रंग का ही समावेश था । यानी प्रचंड दुर्गा की लाल आंखें
, मांग में लाल सिंदूर , शरीर में लाल रंग के कपड़े
और खड्ग, त्रिशूल तथा अन्य हथियार जो कि दानवों का निरंतर संहार कर रहे थे वह भी रक्त
रंजित यानी लाल रंग के ही हो गए थे ।
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समसामयिक
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