रावण दहन कितना उचित ?
रावण का नाम असुर कुल के विद्वानों में अग्रणी
रहा है । रावण ब्राम्हण वंश में उत्पन्न हुए । उनके पिता ऋषि विश्रवा और दादा
पुलस्त्य ऋषि महा तपस्वी और धर्मज्ञ थे, किन्तु माता असुर कुल की होने से इनमें
आसुरी संस्कार आ गए थे । ऋषि विश्रवा की दो पत्नियाँ थीं । एक का नाम ईडविडा था जो ब्राम्हण कुल से थीं और जिनके कुबेर और विभीषण, ये दो संतानें उत्पन्न हुई । दूसरी पत्नी का नाम कैकसी था,
जो असुर कुल से थीं और इनके रावण, कुंभकर्ण और
सूर्पणखा नाम की संतानें उत्पन्न हुई ।
रावण के बिना शिव की भक्ति और ज्योतिष दोनों
अधूरे है । शिव तांडव स्त्रोत और रावण संहिता के रचयिता रावण ही हैं । रावण संहिता
ज्योतिष का अभिन्न अंग है । यदि रावण नहीं होते तो दोनों ग्रंथ और मंत्र नहीं होते
। रावण न सिर्फ प्रकाण्ड विद्वान और वेदों के ज्ञाता थे, बल्कि उनके राज में विज्ञान काफी उन्नत था और उन्होंने
स्वर्ग तक सीढी बनाने की योजना बनाई थी ।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण एक वीर, धर्मात्मा, ज्ञानी, नीति तथा राजनीति शास्त्र का ज्ञाता, वैज्ञानिक,
ज्योतिषाचार्य, रणनीति में निपुण एक कुशल
राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के
साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था । उसे मायावी इसलिए कहा जाता
था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और
तरह-तरह के जादू जानता था । उसके पास एक ऐसा विमान था जो अन्य किसी के पास नहीं था
।
ऎसा पढने को मिलता है कि रावण ने लंका में
दसों दिक्पालों को पहरे पर नियुक्त किया हुआ था । रावण चूंकि ब्राम्हण कुल में जन्में
थे सो पौरोहित्य कर्म में पूर्ण पारंगत थे । शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि
शिवजी ने लंका का निर्माण करवाया और रावण ने उसकी वास्तु शांति करवाई, नगर-प्रवेश करवाया और दक्षिणा में लंका को ही मांग
लिया था तथा लंका विजय के प्रसंग में सेतुबन्ध रामेश्वर की स्थापना, जब श्रीराम कर रहे थे, तब भी मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा
आदि का पौरोहित्य कार्य रावण ने ही सम्पन्न करवाया था ।
रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के
अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की । कुछ का मानना है कि लाल किताब (ज्योतिष
का प्राचीन ग्रंथ) भी रावण संहिता का अंश है । रावण ने यह विद्या भगवान सूर्य से
सीखी थी । 'रावण संहिता'
में उनके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है ।
आज की 'फास्ट फूड' पीढ़ी के लिए त्योहार भी मात्र मनोरंजन
का साधन रह गए हैं । पर्व उन्हें संस्कृति के प्रति गहरा स्नेह और सम्मान भाव नहीं
देते बल्कि 'पिज्जा' और 'बर्गर' की तरह आकर्षित करते हैं । जिसे जितनी जल्दी
और जितना ज्यादा खाया जा सकें उतना बेहतर !
यही वजह है कि आस्था और पवित्रता से सराबोर रहने वाले गरबा-पंडालों में रोशनी और फूलों के स्थान पर 'आई-पिल' और '72 घंटे पिल्स' के होर्डिंग्स सजे हुए हैं । आखिर क्या संदेश देना चाहते हैं ये आयोजक हमारी युवा पीढ़ी को ? कहीं कोई बंधन नहीं, कहीं कोई गरिमा नहीं । कोई शर्म, कोई सम्मान नहीं ? गुजरात के आँकड़ें गिनाना अब पुरानी बात हो गई है । अब यह आँकड़े छोटे शहर से होते हुए गली-मोहल्लों तक आ पहुँचे हैं ।
यही वजह है कि आस्था और पवित्रता से सराबोर रहने वाले गरबा-पंडालों में रोशनी और फूलों के स्थान पर 'आई-पिल' और '72 घंटे पिल्स' के होर्डिंग्स सजे हुए हैं । आखिर क्या संदेश देना चाहते हैं ये आयोजक हमारी युवा पीढ़ी को ? कहीं कोई बंधन नहीं, कहीं कोई गरिमा नहीं । कोई शर्म, कोई सम्मान नहीं ? गुजरात के आँकड़ें गिनाना अब पुरानी बात हो गई है । अब यह आँकड़े छोटे शहर से होते हुए गली-मोहल्लों तक आ पहुँचे हैं ।
हम चाहे कितने ही रावण जला लें लेकिन हर कोने
में कुसंस्कार और अमर्यादा के विराट रावण रोज पनप रहे हैं । रोज राम के देश की कितनी ही 'सीता' नामधारी सरेआम उठा ली
जाती है और संस्कृति के तमाम ठेकेदार रावणों के खेमें में, पार्टियाँ आयोजित करते
नजर आते हैं । आज देश में कहाँ जलता है असली रावण ? जलती है
यहाँ सिर्फ मासूम सीताएँ ।रावण के पुतले का दहन करनेवालों ने क्या कभी अपने गिरेबान में झांककर देखने की कोशिश की है कि वे इस लायक हैं भी या नहीं?क्या उनके अन्दर उनके पड़ोस में पल रहे रावण को जलाने की हिम्मत है?अफजल गुरु और कसाब जैसे कलियुगी रावण जेल में सरकारी मेहमान बन मजे उड़ा रहे हैं और हम हैं कि एक पुतले को जलाकर प्रसन्न हो जाते हैं ।दरअसल इनकी तुलना रावण से करना ,रावण का अपमान है ।
जब तक सही 'रावण' को पहचान कर सही 'समय' पर जलाया नहीं जाता, व्यर्थ है, शक्ति पूजा के नौ दिनों के बाद आया यह दसवाँ दिन जिस पर माँ सीता की अस्मिता जीती थीं । भगवान राम की दृढ़ मर्यादा जीती थी । कब जलेंगें इस देश में असली रावण और कब जीतेगीं सीतायें ? आज के समय में रावण का पुतला जलाना कितना उचित है इस बात पर बहस होनी चाहिए,और हो सके तो इस प्रथा को अब बंद कर देना चाहिए ।
जब तक सही 'रावण' को पहचान कर सही 'समय' पर जलाया नहीं जाता, व्यर्थ है, शक्ति पूजा के नौ दिनों के बाद आया यह दसवाँ दिन जिस पर माँ सीता की अस्मिता जीती थीं । भगवान राम की दृढ़ मर्यादा जीती थी । कब जलेंगें इस देश में असली रावण और कब जीतेगीं सीतायें ? आज के समय में रावण का पुतला जलाना कितना उचित है इस बात पर बहस होनी चाहिए,और हो सके तो इस प्रथा को अब बंद कर देना चाहिए ।
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