संबंधों में कड़ुवाहट

   सफल प्रेम संबंध को व्यक्ति के खुशहाल जीवन की ओर पहला कदम समझा जाता है. प्राय: देखा जाता है कि वे लोग जो अपने साथी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त और अपने संबंध के भविष्य के प्रति निश्चिंत रहते हैं वह उन लोगों की तुलना में ज्यादा प्रसन्न रहते हैं जिनका प्रेम संबंध बहुत बुरे दौर से गुजर रहा होता है. यही कारण है कि जहां एक खुशहाल प्रेम संबंध आपके लिए खुशहाली और सफलता के रास्ते खोल देता है वहीं एक बुरा अनुभव आपके व्यक्तित्व को इस कदर चोट पहुंचाता है कि आपको खुद को संभालने में ही काफी समय लग जाता है. हालांकि प्रेम-प्रसंग हमेशा ही समस्याओं और विवादों के साये में घिरा रहता है. बाहरी लोगों की नज़रों का सामना करना,उनके ओछे कटाक्ष सुनना इत्यादि....ऐसे में आपका साथी आपके साथ हो तो आपमें काफी हिम्मत रहती है,और आप उन बाहरी समस्याओं से तनिक भी विचलित नहीं होते हैं.लेकिन जब बाहरी लोगों की भूमिका आपका अपना साथी ही निभाने लगे तब आपके सामने समस्या खडी हो जाती है,जो आपकी खुशियों को दीमक की तरह खाने लगती है.आप टूटने लगते हैं, दुखी और हताश होने लगते हैं.लाख संभालने के बावजूद भी जब ये समस्याएं आपकी खुशियों और स्वाभिमान को आहत करने लगें तो ऐसे संबंधों से पीछे हट जाना ही बेहतर विकल्प है. आपके संबंध का भविष्य स्थायी है या नहीं इसे आपको खुद ही निर्धारित करना पड़ता है.
   आमतौर पर देखा जाता है कि प्रेम संबंध में रहने वाले जोड़े में से एक व्यक्ति तो हर समय अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण का परिचय देता रहता है लेकिन दूसरा व्यक्ति उसकी भावनाओं को महत्व नहीं देता. ताने मारना,कटाक्ष करना उसका स्वभाव बन जाता है. निश्चित तौर पर यह प्रवृत्ति दूसरे व्यक्ति को ठेस पहुंचाती है. अगर आप का साथी भी आपकी भावनाओं की कद्र नहीं करता या आपको अपेक्षित महत्व नहीं देता, तो निःसंदेह आपके संबंध के लिए ऐसी परिस्थितियां सही नही हैं. निम्नलिखित बिंदुओं को पढ़ने के बाद आप शायद इस बात को जान सकें कि आपका संबंध अब बोझ बन चुका है जिसे जितनी जल्दी समाप्त किया जाए उतना अच्छा है.
     १) अगर आपको लगता है कि आपका साथी और आप एक-दूसरे के साथ अपने संबंध से संतुष्ट नहीं हैं या पारस्परिक भावनाओं जैसी कोई चीज अब आपके बीच में नहीं है,तो बेहतर है अपने संबंध को यहीं समाप्त कर दें.
     २) अगर आपका साथी आपके शौक और आदतों को स्वीकार नहीं करता, संबंध में बंधने के बाद आपका निजी जीवन पूरी तरह समाप्त हो गया है तो जितनी जल्दी हो सके ऐसे संबंध को त्याग दें.
     ३) पारस्परिक सहयोग और समझौता एक रिश्ते के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन अगर हर बार समझौता आप ही को करना पड़ता है और आपका साथी हमेशा आपसे ही त्याग भावना की उम्मीद करता है तो निश्चित तौर पर यह आपके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाली बात है. एक सीमा तक तो यह सब ठीक रहता है लेकिन उसके बाद आपके भीतर स्वयं को 'निम्न' समझने जैसी भावनाएं विकसित होने लगती हैं. बेहतर है ऐसे हालात पैदा ही ना होने दें और अपने साथी को 'गुडबाय' कह दें.
    ४) अगर आपका साथी आपका पक्ष नहीं सुनता,हमेशा अपनी ही बात को आगे रखता है, हर समय आपको अपमानित और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता रहता है तो ये आपके संबंध के लिए अच्छे लक्षण नहीं है.
     ५) आप अपने साथी के लिए खुद को पूरी तरह बदल चुके हैं. आप वहीं करते हैं जो उसे अच्छा लगता है,लेकिन आपका साथी आपके लिए खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं है,तो निश्चित तौर पर यह बात आपके व्यक्तित्व और आपके संबंध,दोनों के लिए पूरी तरह नकारात्मक है.
    ६) आप दोनों को जो भी समय मिलता है ,उस समय को आपका साथी कैसे बिताना पसंद करता है?प्रेमपूर्वक अथवा माहौल गरमा कर?छोटी-छोटी बातों को समस्या बनाकर लड़ने के मौके ढूँढने वाले साथी से अलविदा कह देना ही उचित है.
     ७) संबंधों में मनमुटाव या मतभेद पैदा होना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन एक स्वस्थ संबंध की पहली शर्त है कि आपका साथी कितनी गंभीरता से उन मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करता हैं. अगर आपका साथी अपने मतभेदों को प्रेमपूर्वक सुलझाने का प्रयत्न करने के बजाय अपनी सारी ऊर्जा मतभेद पैदा करने और आपसे लड़ने-झगड़ने में ही खर्च करता हो,तो ऐसे संबंध का कोई औचित्य नही है. यह साफ दर्शाता है कि आपका साथी अपने संबंध के लिए गंभीर नहीं हैं.
    ८) तनाव की स्थिति उत्पन्न होने पर संवाद स्थापित करना सबसे कारगर उपाय होता है.ऐसी परिस्थिति में संवादहीनता संबंधों के लिए विष के समान होती है.तनाव की स्थिति में अगर आपका साथी आपको अपने आप से कुछ दिन दूर रहने के लिए कहता है,आपसे संवाद स्थापित नहीं करता तो समझ जाइए वह स्वयं आप से दूर रहना चाहता है.ऐसे में उससे दूर हो जाने में ही आपकी समझदारी है.आप एक समय तक उसका यह व्यवहार सहन कर लें जाते हैं,लेकिन लंबी अवधि में यह बार-बार घटित होना किसी भी रूप में कारगर सिद्ध नहीं हो सकता.
   संवेदनाओं की आंच में सूझ-बूझ के साथ देखभाल करते हुए सृजनशील रहते हुए ही रिश्ते पकते हैं और इसी में जीवन का स्वाद मिलता है. रिश्तों को पकने में वक्त लगता है, जिसके लिए दोनों का साथ होना बहुत जरूरी है और वह भी पूरी ईमानदारी से .यह याद रखने की जरूरत है कि अगर सूझ-बूझ न हो तो रिश्ते पकने के बजाय जलने लगते हैं.
     ९) आपके जीवन में आपके साथी के आने से पहले आपका जो व्यक्तित्व था,आपके जीवन में आपके साथी के आने के बाद यदि उस व्यक्तित्व में उत्थान हो तो ठीक है.पर यदि आपके व्यक्तित्व में दिनोदिन पतन हो तो ऐसे साथी का साथ अवश्य छोड़ देना चाहिए.
   १०) आखिरी और सबसे जरूरी, अगर आपका साथी आपका सम्मान नहीं करता,आप पर विश्वास नहीं करता,हमेशा शक करता है,बेवजह आपपर दोषारोपण करता है अथवा आपकी भावनाओं का ख़याल नहीं रखता, तो ऐसे संबंध को जल्द-से जल्द समाप्त कर देना ही बेहतर है. हमें अपने आत्मसम्मान की रक्षा स्वयं करनी है और अपमान की स्थिति बने इससे पहले हमें संभल जाना चाहिए.
    प्रेम एक नाजुक रोप के समान होता है जिसे पुष्पित और पल्लवित होने के लिए उस रोप को खून-पसीना एक कर सींचा और संवारा जाता है,ताकि उसकी जड़ें मजबूत हों.सोचिये यदि उस रोप को रोजाना या समय-समय पर झिंझोडते रहेंगे तो उसकी क्या दशा होगी ?क्या वो रोप अपनी जड़ें जमा पायेगा ?नहीं ना.पुष्पित और पल्लवित तो तब होगा न जब खड़ा होगा. ध्यान रखिए कि कभी-कभी अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ना चाहते हुए भी ऐसे फैसले करने पड़ते हैं जो भले ही आज कष्ट पहुंचाएं लेकिन आगामी समय के लिए बेहतर निर्णय साबित हो सकते हैं.आजकल के परिवेश में 'लोग साथ छोड़ देते हैं ,आदतें नहीं छोड़ते',यह एक कटु सत्य है.

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