आधुनिक स्त्री का जीवन

  प्रेम एक ऐसी अबूझ पहेली है, जिसके रहस्य को जानने की कोशिश में जाने कितने प्रेमी दार्शनिक, कवि और कलाकार बन गए । एक बार प्रेम में डूबने के बाद व्यक्ति दोबारा उससे बाहर नहीं निकल पाता । स्त्रियों का प्रेम पुरुषों के लिए हमेशा से एक रहस्य रहा है । कोई स्त्री प्यार में क्या चाहती है, यह जान पाना किसी भी पुरुष के लिए बहुत मुश्किल और कई बार तो असंभव भी हो जाता है । शायद रहस्य को ढूंढने के उधेडबुन से परेशान होकर ही किसी विद्वान पुरुष ने संस्कृत के इस श्लोक की रचना की होगी- स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं, दैवो न जानाति कुतो मनुष्य:।
   प्रेम या दांपत्य संबंधों के मामले में युवा पीढी की सोच में एक नया बदलाव नजर आ रहा है । आज की शिक्षित और आत्मनिर्भर युवा स्त्री को अपनी व्यक्तिगत आजादी इतनी पसंद है कि वह उसे किसी भी कीमत पर, (यहां तक कि प्यार पाने के लिए भी) खोना नहीं चाहती । पिछली पीढी की स्त्री की तरह वह प्यार में अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार नहीं है । अब उसका स्वतंत्र व्यक्तित्व है, उसकी अपनी पसंद-नापसंद, रुचियां और इच्छाएं हैं । उसके पास अपने आप को बदलने की कोई वैसी मजबूरी भी नहीं है, जैसी कि उसकी पिछली पीढी की स्त्रियों की हुआ करती थी कि एक बार किसी पुरुष के साथ शादी या प्रेम के बंधन में बंध जाने के बाद उसके पास अपने साथी अनुरूप खुद को ढालने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं होता था ।
   अब उसे यह बात जरा भी पसंद नहीं आती कि उसका साथी उसे छोटी-छोटी बातों पर उसे रोके-टोके या उसकी पसंद-नापसंद पर अपनी मर्जी थोपने की कोशिश करे । शायद यह पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित व्यक्तिवादी सोच की ही देन है, जिसके अंतर्गत इंसान अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी की भी दखलंदाजी पसंद नहीं करता, चाहे वह उसका प्रेमी या जीवनसाथी ही क्यों न हो । भारतीय स्त्री भी विदेशी संस्कृति के इस प्रभाव से अछूती नहीं है । वह जिससे प्रेम करती है, उससे इस बात की उम्मीद रखती है कि वह उसकी व्यक्तिगत आजादी की भावना का सम्मान करे ।
   आज  पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का जीवन ज्यादा तेजी से बदला है । पहले की तुलना में उसके संबंधों में ज्यादा उथल-पुथल देखने को मिलता है । आज स्त्रियों के प्रेम में समर्पण की भावना खत्म होती जा रही है, इसी वजह से चाहे प्रेम हो या शादी,उनके किसी भी रिश्ते के ‘स्थायित्व के लिए’ खतरा पैदा हो गया है । हम खुशी पाने की चाहत में प्यार करते हैं, पर यह जरूरी नहीं कि हर बार हमारी उम्मीदें सच ही साबित हों । रिश्ते बनाने में उम्र गुजर जाती है, पर टूटने के लिए कुछ पल काफी होते हैं  । प्यार में कोई हिसाब-किताब नहीं होता । प्रेम का नाम है एक हो जाना । सच्चे प्रेम में अपने साथी से कुछ पाने के बजाय उसे देने की इच्छा अधिक होती है । आज का प्रेम भौतिकतावादी हो चुका है और युवा पीढी प्रेम में भावनाओं से ज्यादा सेक्स को अहमियत देने लगी है । आज की लडकियां प्रेम करने से पहले लडके का दिल नहीं बल्कि उसका बैंक बैलेंस देखती हैं । पुराने समय की तुलना में आज की स्त्री प्रेम के मामले में व्यावहारिक हो चूकी है ।
    प्रेम एक शाश्वत भावना है, जो सदैव बनी रहती है । साठ के दशक की प्रेम में समर्पित नायिका के मन में अपने साथी के प्रति-तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा, तुम्हीं देवता हो, जैसी भावना होती थी और वह अपने प्रेमी या पति के सामने अपनी हर स्थिति को खुशी-खुशी स्वीकार लेती थी । लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्त्रियों की सोच में काफी बदलाव आया है,और वे पहले की तुलना में ज्यादा उन्मुक्त, मुंहफट और लज्जाहीन हो गयीं है ।
    इसका कारण भी है ।आधुनिक मध्यवर्गीय स्त्री का जीवन अति व्यस्त और कशमकश से भरा हुआ है । पहले वह घर की चारदीवारी में कैद रहती थी, इस वजह से उसकी इच्छाएं भी बहुत सीमित थीं और अपने बंद दायरे में भी वह खुश और संतुष्ट रहती थी । अब घर की दहलीज से बाहर निकलते ही उसकी इच्छाओं को पर लग जाते हैं,और उन इच्छाओं की पूर्ती के लिए वह किसी भी प्रकार के समझौते करने से पीछे नहीं हटती । इसका परिणाम ये हुआ है कि आजकल की ज्यादातर स्त्रियाँ अपनी इस स्थिति से असंतुष्ट हैं । पहले बाहर की दुनिया से वह बेखबर थी लेकिन आज उनके अनुभवों का दायरा पहले की तुलना में काफी विस्तृत है । ऐसी स्थिति में अब उसे समाज को ज्यादा करीब से देखने और समझने का अवसर मिला है । अब वह अपने जीवन की तुलना दूसरी स्त्रियों से आसानी से कर सकती है ....
   सत्तर के दशक में एक फिल्म आयी थी 'दाग'...उसके सभी हिट गानों में एक गीत लड़कियों में ज्यादा लोकप्रिय हुआ था, जो कि उनकी उस समय की मनोदशा को दर्शाता भी था..उस गीत की दो पंक्तियाँ---'यार मिले तो जग क्या करना,यार बिना जग सूना,जग के बदले यार मिले तो,यार का मोल दूं दूना '-------अफ़सोस आजकल की स्त्रियों में ये भावना आपको नहीं मिलेगी....

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