विनम्रता...

   

   अहंकार में डूबा हुआ व्यक्ति अपने से बड़ों का सम्मान करना भूल जाता है.जब उसे अपनी योग्यता से अधिक अचानक कुछ मिलने लगता है तब वह अहंकारी हो जाता है.बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो इससे अपने आप को बचा ले जाते हैं.ऐसे लोग जो कुछ भी मिलता है उसे ईश्वर का प्रसाद मानकर सदैव विनम्र बने रहते हैं.मेरी नज़र में वो विरले होते हैं.इसके विपरीत समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने लिए अधिक से अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं के साधन एकत्रित करना और अच्छे वस्त्र पहनने में ही अपना बड़प्पन समझते हैं.उनके अनुसार इन सब चीजों से आत्मविश्वास बढता है.बेचारे गांधीजी,आजीवन एक धोती में अपना जीवन कैसे गुजारे होंगे?अंग्रेजों के आत्मविश्वास के आगे उनका आत्मविश्वास तो कब का टूट जाना चाहिए था.पर ऐसा हुआ नहीं,क्योंकि ये सच नहीं है.
   हालांकि मैं इस बात से सहमत हूँ कि अच्छे वस्त्र पहनने से आत्मविश्वास बढता है.पर ऐसा आत्मविश्वास किस काम का जो खुद में अहंकार और दूसरों को हेय समझने की वृत्ति पैदा करे.अपने आगे दूसरों को हेय समझना और स्वयं को श्रेष्ठ समझना किस प्रकार के आत्मविश्वास को प्रकट करता है?.अहंकारी व्यक्ति किसी के लिए कुछ कर देने पर उसे समय-समय पर ये अहसास कराते रहते हैं कि मैंने तुम्हारे लिए ये किया,अर्थात मेरा उपकार कभी मत भूलना.अभिमानी व्यक्ति से सेवा तो कम होती है,पर उसको लगता है कि मैनें सेवा ज्यादा की.परन्तु निरभिमानी व्यक्ति को पता तो कम लगता है,पर सेवा ज्यादा होती है.
   इसके विपरीत व्यक्ति यदि विनम्रता पूर्वक प्रगति करे,निरभिमानी रहे,अपने से बड़ों का सम्मान करे और उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए अधिकाधिक विनम्र होता जाये तो उसके आत्मविश्वास के क्या कहने.आपको याद तो होगा ही कि फलदार पेड़ हमेशा नत रहते हैं और ये भी कि,तूफान के आने पर बड़े-बड़े पेड़ धराशायी हो जाते हैं और छोटे-छोटे घास-फूस बच जाते हैं. यदि आप चाहते हैं कि कोई भी आपको बुरा न समझे तो दूसरे को बुरा समझने का आपको कोई अधिकार नहीं है.अगर हम दूसरों में दोष देखेंगे तो उसमें वे दोष पैदा हो जायेंगे;क्योंकि उसमें दोष देखने से हमारा त्याग,तप,बल आदि भी उस दोष को पैदा करने में स्वाभाविक रूप से सहायक बन जाते हैं और इससे अंततः हमारा ही नुकसान होता है.एक बुरे स्वभाव वाले व्यक्ति को लगातार अच्छा-अच्छा बोला जाय तो वह अच्छा बन जाता है,और एक अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति को लगातार बुरा-बुरा कहा जाय तो वह वाकई बुरा बन जाता है.अब यह हमपर निर्भर करता है कि हम अपने आस-पास कैसे लोगों का समूह खड़ा देखना चाहते हैं.

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