विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं


   ब्लॉग के सभी पाठकों को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें.बचपन से मैं इस त्योहार को मनाते आ रहा हूँ.छोटा था तो अक्सर रामलीला देखने देर रात तक छुपकर घर से बाहर निकल जाया करता था.एक कौतुहल मन में तब से ही पैदा हो गया था कि आखिर रावण को जलाया क्यों जाता है?नानाजी के मुख से अक्सर रावण की महिमा को ही सुनता आया था.सुबह-सवेरे हाथों में रुद्राक्ष की माला,मंत्र बुदबुदाते होंठ और अंत में उच्च स्वर में शिव-ताण्डव स्तोत्र.एक अजीब से वातावरण का निर्माण हो जाता था.मेरे मन-मष्तिष्क में तो एक अलग ही प्रकार के जोश का संचार होने लगता था.और उसके बाद रोज की तरह रावण को महिमामंडित करते उनके विचार.और हर वर्ष की भांति विजयादशमी के दिन उनकी उँगलियों को पकड़कर रावण दहन देखने जाना.आज समाज में चारों तरफ सफेदपोश रावणों को देखता हूँ तो फिर से वही प्रश्न कि आखिर रावण को जलाया क्यों जाता है?रावण ऐसा तो नहीं था कि उसे हर साल जलाने की जरूरत हो.बल्कि आजकल के कलियुगी रावण से तो कोटि-कोटि गुना अच्छा था वह.जिस रावण की विद्वत्ता का लोहा स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम राम मानते थे,जिसने ना जाने कितने श्रेष्ठ ग्रंथों की रचना की थी,जो स्वयं राम के हाथों मोक्ष पाना चाहता था,जिसने युद्ध पर जाने से पहले अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बाँट दी थी,जो सीता हरण के पश्चात उन्हें अन्तःपुर में ना ले जाकर सिर्फ इसलिए अपनी वाटिका में रखा था कि राम-सीता का चौदह वर्ष का वनवास न टूटे.क्या सचमुच में रावण ऐसा था जिस रूप में आज की जनता उसे जानती है....नहीं..दरअसल देश की जनता भोली है,वह असली और नकली रावण का भेद नहीं कर पाई है.आज जरूरत है कि जनता फिर से इस बात को समझे कि महान रावण के घास-फूस से बने पुतले फूंकने से देश का भला नहीं होनेवाला.रावण तो राम के हाथों मोक्ष पा चूका.हर साल मूर्खों की तरह नकली पुतला फूंकने से अच्छा है जिन्दा रावणों का दहन किया जाय,ताकि फिर से इस देश में रामराज्य आ सके.अंत में रावण रचित शिव ताण्डव स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ.....
जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले,
गलेव लम्ब लम्बिताम् भुजंग तुंग माल्लीकाम्
डमड्डमड्डमड्ड मन्नीनाद वड्डमर्वयम्म
चकार चंड ताण्डवम् तनों तुनः शिवः शिवम्
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