कुछ शायरियाँ-१

१. एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं ।
२. कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं,
जिंदगी तून तो धोखे पे दिया है धोखा ।
३. जो उलझी थी कभी आदम के हाथों,
वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूं ।
४. बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं,
तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं ।
५. गरज कि काट दिए जिंदगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में ।
६. दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं,
कितना हसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं ।
७. हमसे क्या हो सका मोहब्बत में,
खैर तुमने तो बेवफाई की ।
८. मुद्दतें गुजरी तेरी याद भी आयी न हमें,
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं ।
__ फ़िराक गोरखपुरी
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कविता
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