कुछ शायरियाँ-२



१. ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है,
    क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम ।

२. फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला,
    देखिए आप ने फिर प्यार से देखा मुझ को ।

३. आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें,
    हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं ।

 ४. अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में,
     कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने ।

           ५. उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ,
    अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई ।

६. उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा,
    मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा ।

७. कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त,
    सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया

८. तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम,
    ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम ।

९. गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से,
    पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम ।

१०. तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को,
     बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने ।


__ साहिर लुधियानवी 

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