स्वास्थ्य क्या है?
स्वस्थ रहना सबसे
बड़ा सुख है। कहावत भी है- 'पहला सुख निरोगी काया'। कोई आदमी तभी अपने जीवन का पूरा आनन्द उठा सकता है, जब वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहे। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ
मस्तिष्क निवास करता है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शारीरिक
स्वास्थ्य अनिवार्य है। ऋषियों ने कहा है 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' अर्थात् यह शरीर ही धर्म का श्रेष्ठ साधन है। यदि हम धर्म में विश्वास रखते
हैं और स्वयं कोधार्मिक कहते हैं,
तो अपने शरीर को स्वस्थ रखना हमारा पहला कर्तव्य है। यदि
शरीर स्वस्थ नहीं है,
तो जीवन भारस्वरूप हो जाता है।
प्रश्न उठता है कि
स्वास्थ्य क्या है अर्थात् किस व्यक्ति को हम स्वस्थ कह सकते हैं? साधारण रूप से यह माना जाता है कि किसी प्रकार का शारीरिक और मानसिक रोग न
होना ही स्वास्थ्य है। यह एक नकारात्मक परिभाषा है और सत्य के निकट भी है, परन्तु पूरी तरह सत्य नहीं। वास्तव में स्वास्थ्य का सीधा सम्बंध क्रियाशीलता
से है। जो व्यक्ति शरीर और मन से पूरी तरह क्रियाशील है, उसे ही पूर्ण स्वस्थ कहा जा सकता है। कोई रोग हो जाने पर क्रियाशीलता में कमी
आती है,
इसलिए स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
प्रचलित चिकित्सा
पद्धतियों में स्वास्थ्य की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी गई है। ऐलोपैथी और
होम्योपैथी के चिकित्सक किसी भी प्रकार के रोग के अभाव को ही स्वास्थ्य मानते हैं।वे
रोग को या उसके अभाव को तो माप सकते हैं, परन्तु
स्वास्थ्य को मापने का उनके पास कोई पैमाना नहीं है। रोग के अभाव को मापने के लिए
उन्होंने कुछ पैमाने बना रखे हैं,
जैसे हृदय की धड़कन, रक्तचाप, लम्बाई या उम्र के अनुसार वजन,
खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा आदि। इनमें से एक भी बात
अनुभव द्वारा निर्धारित सीमाओं से कम या अधिक होने पर वे व्यक्ति को रोगी घोषित कर
देते हैं और अपने हिसाब से उसकी चिकित्सा भी शुरू कर देते हैं।
पहला
सुख निरोगी काया।
दूजा
सुख घर होवै माया॥
तीजा
सुख कुलवन्ती नारी।
चौथा
सुख सुत आज्ञाकारी॥
पंचम
सुख भाई बलवीरा।
छठा
सुख हो राज में सीरा॥
सप्तम
सुख स्वदेश में वासा।
अष्टम
सुख हों पंडित पासा॥
नौवां
सुख हों मित्र घनेरे।
ऐसे नर
नहिं जग बहुतेरे॥
साभार_वेब दुनिया.
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