नरेन्द्र मोदी का उपवास और कांग्रेसी खिसियाहट

   सभी धर्मों में उपवास की आवश्यकता बताई गई है. इसलिए हर व्यक्ति अपने धर्म परंपरा के अनुसार उपवास या व्रत करता ही है. वास्तव में व्रत उपवास का संबंध हमारे शारीरिक एवं मानसिक शुद्धिकरण से है . इससे हमारा शरीर स्वस्थ रहता है .संभवत: इसके महत्व को समझते हुए सभी धर्मों ने इसे धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ दिया है, ताकि लोग उपवास के अनुशासन में बंधे रहें .
   गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी  देश में सद्भावना कायम करने के लिए अपने जन्मदिन पर यानी कि  १७  सितंबर से तीन दिन तक सद्भावना उपवास करने का ऐलान किया .आज सबसे पहले सुबह नरेंद्र मोदी ने अपनीं मां नर्मदा देवी का आशीर्वाद लिया . मां ने उन्हें जन्मदिन की भेंट स्वरूप रामचरित मानस किताब दी. मोदी के अनशन शुरू होने से पहले कांग्रेस नेता शंकर सिंह वाघेला भी साबरमती के फुटपाथ पर उपवास पर  बैठ गये . उन्होंने मोदी के  उपवास को नाटक बताया. मोदी के उपवास  में शामिल होने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, अरूण जेटली, मुख्तार अब्बास नकवी, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की ओर से दो मंत्री शांमिल हुए .
   दरअसल जब से अमेरिकी कांग्रेस ने देश के अगले प्रधानमंत्री के लिए नरेन्द्र मोदी को सबसे उपयुक्त और राहुल गाँधी को सबसे कमजोर दावेदार घोषित किया है ,कांग्रेस तिलमिला उठी है.उसे नरेन्द्र मोदी का उपवास एक स्टंट नज़र आ रहा है.सारे के सारे तथाकथित सेकुलर नेता लामबंद होकर चीख रहे हैं कि देश का प्रधानमंत्री मोदी नहीं बन सकते.उनके दामन पर गुजरात नरसंहार का दाग है.कांग्रेसी प्रवक्ता लगभग हर चैनल पर चीख रहे हैं कि जो व्यक्ति आज तक गुजरात दंगों के लिए देश से माफी तक नहीं माँगा है वो उपवास से क्या सद्भावना पैदा कर पायेगा ?
   ये हाय-तौबा मचाने वाले कांग्रेसी प्रवक्ता पहले इस बात का जवाब दें कि जब श्रीमती इंदिरा गांधी की  हत्या हुई थी तब पुरे देश में सिखों का जो कत्लेआम हुआ था उसके लिए आज तक न तो सोनिया गांधी ने माफी माँगा है,न राहुल गांधी ने. दिवंगत राजीव की बात जाने दीजिए.लेकिन उस नरसंहार के बाद स्व. राजीव गांधी के उस बयान को ये कांग्रेसी क्यों भूल जाते हैं कि “जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तब धरती पर हलचल होती ही है.”इसके बावजूद स्व. राजीव गांधी देश के अगले प्रधानमंत्री बने.तो नरेन्द्र मोदी क्यों नहीं बन सकते? गोधरा में अयोध्या से लौट रहे निहत्थे कारसेवकों को जिस तरह से ट्रेन में जिन्दा फूंक दिया गया था क्या उसे कोई भी आम हिंदुस्तानी बर्दाश्त कर सकता था?नहीं.उसी की  प्रतिक्रिया स्वरुप गुजरात में दंगे शुरू हुए थे.गोधरा में  एक पेड़ नहीं ,सैकड़ों पेड़ धराशाई हुए थे,उसकी प्रतिक्रिया में हलचल मचना तो स्वाभाविक था.
    नरेंद्र मोदी के ‍खिलाफ जंग की शुरुआत भी हो चुकी है.ये कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नया एजेंडा है. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को हथियार बनाकर मोदी के ‍खिलाफ जंग जीतने का एजेंडा गुजरात में सोनिया गांधी की राजनीतिक जिजीविषा की मुनादी है. इस महत्वाकांक्षी राजनीतिक युद्ध की कमान सोनिया गांधी ने अपने हाथों में रखी है. हथियार बनाया है राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को.
   सोनिया गांधी महज़ इतना ही करके चुप बैठना नहीं चाहतीं. उनकी कोशिश है कि नरेन्द्र मोदी के ऊपर साधा गया उनका निशाना अचूक साबित हो. इसके लिए वे सांप्रदायिकता विरोधी क़ानून का भी पूरा इस्तेमाल करना चाहती हैं. उनकी कोशिश है कि सरकार जल्द से जल्द यह क़ानून बनाए ताकि इसका फंदा बनाकर वह नरेंद्र मोदी के गले में डाल सकें. अभी नरेन्द्र मोदी के ख़िला़फ तमाम मामले अदालत में हैं. इस दरम्यान सांप्रदायिकता विरोधी क़ानून बनाने में अगर सरकार सफल हो जाती है तो नरेन्द्र मोदी के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो सकता है.ये अलग बात है कि संसद में भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के तीब्र विरोध के चलते ये क़ानून संसद में पेश नहीं हो पाया.
   एक और अहम बात यह भी है कि सोनिया गांधी, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सियासी जंग तो जीतना चाहती हैं, लेकिन गुजरात में अपने किसी सियासी सिपहसालार पर भरोसा भी नहीं करतीं. इसका राजनीतिक संदेश यह भी जाता है कि सोनिया की नज़र में गुजरात प्रदेश कांग्रेस का कोई नेता इतना योग्य नहीं है, जो नरेंद्र मोदी के ख़िला़फ माहौल खड़ा करने का माद्दा रखता हो. पिछली बार जब गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे तो नरेंद्र मोदी के मुक़ाबले प्रदेश स्तर का कोई कांग्रेसी नेता नहीं था. नरेन्द्र मोदी ने भी सीधे-सीधे सोनिया गांधी को ही ललकारा था. ऐसे में मोदी के सामने सोनिया गांधी को ही सीधे मैदान में उतरना पड़ा . फिर भी कांग्रेस बुरी तरह हार गई. मौज़ूदा व़क्त में कांग्रेस की सबसे बड़ी ग़रज़ भी यही है कि सबसे पहले, गुजरात में नरेंद्र मोदी के ख़िला़फ जम कर माहौल तैयार किया जाए, ताकि अगले विधानसभा चुनावों में गुजरात के मतदाताओं का रु़ख कांग्रेस की तऱफ  मोड़ने में उसका इस्तेमाल किया जा सके.
   इसके लिए सोनिया गांधी अपने दूतों के ज़रिए गुजरात और देश के दूसरे मुसलमानों को यह भरोसा दिलाना चाहती हैं कि देश में मुसलमानों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार अगर कोई दिलवा सकता है तो वह स़िर्फ कांग्रेस पार्टी ही है और भाजपा एवं भाजपाई मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी जान के सबसे बड़े दुश्मन हैं.अब इसे क्या कहें कि गुजरात के मुसलमान देश के अन्य किसी राज्य के मुसलमानों से ज्यादा सुरक्षित और विकसित हैं . जिस तरीके से सोनिया राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के ज़रिए अपना पासा फेंक रही हैं, उससे यही बात ज़ाहिर हो रही है कि कांग्रेस का मक़सद देश में सांप्रदायिक सौहार्द क़ायम करना नहीं, बल्कि खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करना ज़्यादा है.जरुरत है देश की जनता इस बात को समझे.कांग्रेस ने मुसलमानों के तुष्टिकरण की जो नीति अपनाई है वह देश के लिए बेहद घातक और विघटनकारी है.जरुरत है वक्त रहते देश के सौ करोंड़ हिंदू इस बात की गंभीरता को समझें और तदनुसार कदम उठाएं तभी इस देश से वोट-बैंक की राजनीति समाप्त होगी अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब इस देश में एक और पाकिस्तान खड़ा हो जाएगा और काश्मीर की तरह हिंदू , इस देश में भी अल्पसंख्यक हो जायेंगे.
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