तस्वीर
किस तरह पाता भला मै
लक्ष्य अपने चाह की,
पंख मेरे कट चुके थे
पांव में जंजीर थी .
लोग ये कहते हैं होता,
कुछ नहीं है पंख से ,
हौसला गर हो तो मंजिल,
चूमती पद वीर की.
था
बहुत विश्वास मन में ,
हौसला
भी खूब था ,पर ,
उससे
ज्यादा क्या मैं पाता ,
जो
मेरी तकदीर थी.
चाहता था रंग भरना ,
ख्वाहिशों के चित्र में ,
नींद टूटी तो ये देखा ,
क्या मेरी तस्वीर थी .
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कविता
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