नासूर
खो गया है चाँद बदली में
नज़र आता नहीं ,
बन गया नासूर पक कर घाव ,
भर पाता नहीं .
खो गई हैं मंज़िलें दुनिया की
अंधी दौड़ में ,
कौन है अपना,पराया कौन ?
नज़र आता नहीं .
लुट चुके जज्बात जिन्दा ,
मिट चुकी है ख्वाहिशें ,
एक जिन्दा लाश हूँ,तो क्यूँ मैं
मर जाता नहीं ?
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कविता
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