सोलह सिंगार...
पाँव की बिछिया तुम्हारे
बन के रहना चाहता हूँ,
हाँथ के मेहंदी की खुशबू
बन महकना चाहता हूँ.
मैं बनूँ होठों की लाली
कान का झुमका भी मैं,
उँगलियों पर की अंगूठी
मांग का टीका भी मैं.
बन के चूड़ी मैं कलाई की
खनकना चाहता हूँ,
नाक की नथनी सुशोभित हो
दमकना चाहता हूँ.
भाल की बिंदिया तुम्हारे
पैर की पायल बनूँ,
जो चमकती है सदा उस
आँख का काजल बनूँ.
चाहे बाजूबंद हो या,
हो कमर की करधनी,
सुर्ख रंगों की महावर
बन चमकना चाहता हूँ.
मांग का सिन्दूर जगमग,
हार बनना चाहता हूँ,
मैं तुम्हारा सोलहों
सिंगार बनना चाहता हूँ.
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