गांव की गोरी
एक दिवानी आई है ,
गांव की गोरी घूंघट ओढ़े
चुनर धानी आई है.....
अनजानों की बस्ती में मैं
अनजाना सा रहता था ,
भीड़ में भोली सी सूरत
जानी-पहचानी आई है.....
भरी दुपहरी कड़ी धुप से
जलते तपते जीवन को ,
शीतल झोंकों से सहलाने
भोर सुहानी आई है.....
सतरंगी सपनों को लेकर
सेज सजाई जो मैंने ,
खुशबू से उसको महकाने
रात की रानी आई है.....
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कविता
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
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