अप्सरा
स्वर्ग की वो अप्सरा ,
जन्नत की कोई हूर थी I
मैं धरा का पुत्र वो ,
मेरी पहुँच से दूर थी II
लब गुलाबी पंखुड़ी ,
आँखें नशे में चूर थी I
केश सावन की घटा ,
यौवन कसी अंगूर थी II
नैन तीखे,देह चन्दन की
महक भरपूर थी I
स्वर्ग की वो अप्सरा ,
मेरी पहुँच से दूर थी II
Labels:
कविता
बहुत ही बढ़िया...
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