मैं अकेली...
चोट अन्दर तक लगी,गहरे असर की बात है II
यार की बातें छिड़ी तो घाव ताज़ा हो गया ,
गौर से सुनने लगी,अपने ही घर की बात है II
गाँठ थी कमजोर उसको रख न पाई बांधकर ,
तोड़कर बहने लगी,उठते लहर की बात है II
है तजुर्बे की कमी,मंजिल भी शायद दूर है ,
किस तरह पूरा करूँ,लम्बे सफ़र की बात है II
चार दिन की बात हो तो काट लूँ हँसते हुए ,
कैसे गुजरेगी अकेले,उम्र भर की बात है II
दे रही दस्तक 'उजाला' हो खड़ी दहलीज़ पर ,
कालिमा छँटने लगी ,नूतन पहर की बात है II
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कविता
फेरकर मुझसे गया जो ,उस नज़र की बात है
जवाब देंहटाएंचोट अन्दर तक लगी,गहरे असर की बात है
बहुत सुन्दर मनभावन रचना .... वाह
क्या खूब बात है.. वाह वाह..
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