सरकार
बताओ कैसी ये सरकार ?
गांव-गांव पसरा सूनापन ,
जनता करती रोज पलायन ,
रोजी को लाचार...बताओ कैसी..?
खुल रहे नित नए घोटाले ,
मीलों पर लटके हैं ताले ,
मल्टीप्लेक्स भरमार...बताओ कैसी..?
‘कारगिल’का फ्लैट डकारे ,
अरबों के हैं वारे-न्यारे ,
करके भ्रष्टाचार...बताओ कैसी..?
लूट,अपहरण,सीनाजोरी ,
इनकी भरती खूब तिजोरी ,
नोटों का अम्बार...बताओ कैसी..?
जनता से खिलवाड़ कर रहे ,
भूखे,नंगे रोज मर रहे ,
करके हाहाकार...बताओ कैसी..?
लहसुन का भी भाव बढ़ गया ,
गल्ले का भण्डार सड़ गया ,
सोते रहे पवार...बताओ कैसी..?
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