मैं अकेला..
आँख में पलता रहा I
शूल थे बिखरे जिधर ,
उस राह पर चलता रहा II
जो न करना था वो
कर डाला खुशी के वास्ते I
आस का दीपक कभी
बुझता,कभी जलता रहा II
छलकपट से वो भरी ,
बातों से बहलाती रही I
कर छलावे पर यकीं ,
मैं आप खुद छलता रहा II
पाल कर सोने के पिंजरे
में हिफाज़त से रखा I
उड़ गया पंछी,अकेला
हाथ मैं मलता रहा II
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कविता
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