मैं अकेला..

स्वप्न था सुन्दर सलोना ,
आँख में पलता रहा I
शूल थे  बिखरे जिधर ,
उस राह पर चलता रहा II
            जो न करना था वो 
            कर डाला खुशी के वास्ते I
            आस का दीपक कभी 
            बुझता,कभी जलता रहा II
छलकपट से वो भरी ,
बातों से बहलाती रही I
कर छलावे पर यकीं ,
मैं आप खुद छलता रहा II
            पाल कर सोने के पिंजरे 
            में हिफाज़त से रखा I
            उड़ गया पंछी,अकेला 
            हाथ मैं मलता रहा  II

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