चोरों के सरदार...
उलटे-सीधे दाव चल रहे,कैसे सिब्बल भईया I
अन्ना रहे ख्याल,न जाए डूब तुम्हारी नईया II
डूब न जाए नईया,सब शातिर मक्कार I
दिग्गी,सिब्बल लगते चोरों के सरदार II
चोरों के सरदार,दिख रहे ऐंठे-ऐंठे I
मनमोहन चूहे की भांति बिल
में बैठे II
बिल में बैठे,चमचे उनके दांत निपोरें I
लोकपाल के बदले दें आश्वासन
कोरे II
जनता के पैसे को जमकर
लूटा-खाया I
उजले दामन पर ये कैसा दाग
लगाया ?
कलयुग का है खेल,हुआ राजा कंगाल I
सेवक थे जो,आज हो गए मालामाल II
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कविता
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